हिंदी की पाठशाला : एक परिचय

* * * * * * * * * * * II अभियान जबलपुर की प्रस्तुति : हिंदी की पाठशाला II * * * * * * * * * * * एक परिचय : अभियान जबलपुर २० अगस्त १९९५ को सनातन सलिला नर्मदा तट स्थित संस्कारधानी जबलपुर में स्थापित की गयी स्वसंसाधनों से संचालित एक अशासकीय साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था है. उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहन, पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, जल स्रोत संरक्षण, वर्षा जल संचयन, नागरिक / उपभोक्ता अधिकार संरक्षण, दिव्य नर्मदा अलंकरण के माध्यम से देश के विविध प्रान्तों में श्रेष्ठ साहित्य के सृजन, प्रकाशन तथा साहित्यकारों के सम्मान, दहेज़ निषेध, आदर्श मितव्ययी अन्तर्जातीय सामूहिक विवाह, अंध श्रृद्धा उन्मूलन, आपदा प्रबंधन, पुस्तक मेले के माध्यम से पुस्तक संस्कृति के प्रसार आदि क्षेत्रों में महत कार्य संपादन तथा पहचान स्थापित कर संस्था का नवीनतम अभियान अंतर्जाल पर चिट्ठाकारी के प्रशिक्षण व प्रसार के समान्तर हिन्दी के सरलीकरण, विकास, मानक रूप निर्धारण, विविध सृजन विधाओं में सृजन हेतु मार्गदर्शन, समकालिक आवश्यकतानुसार शब्दकोष निर्माण, श्रेष्ठ साहित्य सृजन-प्रकाशन, सृजनकारों के सम्मान आदि के लिए अंतर्जाल पर सतत प्रयास करना है. दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम, हिंदी की पाठशाला आदि अनेक चिट्ठे इस दिशा के विविध कदम हैं. विश्वैक नीडं तथा वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श को आत्मसात कर अभियान इन उद्देश्यों से सहमत हर व्यक्ति से सहयोग के आदान-प्रदान हेतु तत्पर है.

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018

muktak rachna

मुक्तक काव्य परंपरा संस्कृत से अन्दर भाषाओं ने ग्रहण की है। मुक्तक का वैशिष्ट्य अपने आप में पूर्ण होना है। उसका कथ्य  पहले या बाद के छंद से मुक्त रहता है। दोहा, रोला, सोरठा आदि द्विपदिक मुक्तक छंद हैं।
सवैया चतुष्पदिक मुक्तक छंद है। कुंडली षट्पदिक मुक्तक छंद है।
चतुष्पदिक मुक्तक में १. पहली, दूसरी, चौथी २. पहली-दूसरी, तीसरी-चौथी तथा ३. पहली-चौथी, दूसरी-तीसरी पंक्ति के
पदांत साम्य तीन तरह के शिल्प में रचना की जाती है। मुक्तक को तुक्तक, चौपदा, चौका आदि भी कहा गया है।
हिंदी मुक्तक में मात्रा-क्रम पर कम, मात्रा योग पर अधिक ध्यान दिया जाता है। तुकांत नहीं, पदांत साम्य आवश्यक है।
विराट जी के उक्त मुक्तक में पहली दो पंक्तियां १८ मात्रिक, बाद की दो १९ मात्रिक हैं। यह अपवाद है। सामान्यत: सब पंक्तियों में मात्रा-साम्य होता है।
हिंदी मुक्तक में लघु को दीर्घ, दीर्घ को लघु पढ़ने की छूट नहीं है, यह काव्य दोष है।
कुमार विश्वास के उक्त मुक्तक में यह दोष है।

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