हिंदी की पाठशाला : एक परिचय

* * * * * * * * * * * II अभियान जबलपुर की प्रस्तुति : हिंदी की पाठशाला II * * * * * * * * * * * एक परिचय : अभियान जबलपुर २० अगस्त १९९५ को सनातन सलिला नर्मदा तट स्थित संस्कारधानी जबलपुर में स्थापित की गयी स्वसंसाधनों से संचालित एक अशासकीय साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था है. उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहन, पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, जल स्रोत संरक्षण, वर्षा जल संचयन, नागरिक / उपभोक्ता अधिकार संरक्षण, दिव्य नर्मदा अलंकरण के माध्यम से देश के विविध प्रान्तों में श्रेष्ठ साहित्य के सृजन, प्रकाशन तथा साहित्यकारों के सम्मान, दहेज़ निषेध, आदर्श मितव्ययी अन्तर्जातीय सामूहिक विवाह, अंध श्रृद्धा उन्मूलन, आपदा प्रबंधन, पुस्तक मेले के माध्यम से पुस्तक संस्कृति के प्रसार आदि क्षेत्रों में महत कार्य संपादन तथा पहचान स्थापित कर संस्था का नवीनतम अभियान अंतर्जाल पर चिट्ठाकारी के प्रशिक्षण व प्रसार के समान्तर हिन्दी के सरलीकरण, विकास, मानक रूप निर्धारण, विविध सृजन विधाओं में सृजन हेतु मार्गदर्शन, समकालिक आवश्यकतानुसार शब्दकोष निर्माण, श्रेष्ठ साहित्य सृजन-प्रकाशन, सृजनकारों के सम्मान आदि के लिए अंतर्जाल पर सतत प्रयास करना है. दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम, हिंदी की पाठशाला आदि अनेक चिट्ठे इस दिशा के विविध कदम हैं. विश्वैक नीडं तथा वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श को आत्मसात कर अभियान इन उद्देश्यों से सहमत हर व्यक्ति से सहयोग के आदान-प्रदान हेतु तत्पर है.

शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2010

दोहा का रंग : हिन्दी के संग संजीव 'सलिल'

दोहा का रंग : हिन्दी के संग 

संजीव 'सलिल'
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हिन्दी सजती भाल पर, भारत माँ के भव्य.

गौरवगाथा राष्ट्र की, जनवाणी यह दिव्य..

हिन्दी-बिंदी सुशोभित, शारद माँ का भाल.
हिन्दी से ही हिंद का, है भविष्य खुशहाल..

अक्षर-अक्षर पुष्प है, शब्द-वाक्य गलहार.
गद्य कथा, पद आरती, सृजन मातु-मनुहार..

हिन्दी सारे जगत को, है प्रभु का वरदान.
सब जग पढ़-लिख-बोलकर, हो परिवार-समान..

संस्कृत की पौत्री प्रखर, प्राकृत-पुत्री शिष्ट.
उर्दू की आपा प्रखर, हिन्दी-सलिल विशिष्ट..

हिन्दी आता माढ़िये, उर्दू मोयन डाल.
'सलिल' संस्कृत सान दे, पूड़ी बने कमाल..

ईंट बने सब बोलियाँ, गारा भाषा नम्य.
भवन भव्य है हिंद का, हिन्दी हृदय प्रणम्य..

प्राकृत औ' अपभ्रंश की, थाती रखी सहेज.
सुरवाणी की विरासत, हिन्दी में है तेज..

लश्कर में कर फारसी-अरबी से गठजोड़.
रूप-राशि उर्दू नहीं, गैर- न कोई होड़..

सब भाषाएँ-बोलियाँ, सरस्वती के रूप.
संगम शब्दों का बने, तीरथ पूत अनूप..

भाषा-बोली श्रेष्ठ हर, त्याज्य न कोई हेय.
सबका सबसे स्नेह ही, शब्द-साधना-ध्येय..

उपवन में कलरव करें, पंछी नित्य अनेक.
भाषाएँ जल-धार शत, शुद्ध रखें सविवेक..

भाषा बोलें कोई भी, किन्तु बोलिए शुद्ध.
मन से मन तक जा सके, बनकर दूत प्रबुद्ध..

ज्ञान-गगन में सोहाती, हिन्दी बनकर सूर्य.
जन-हित के संघर्ष में, है रण-भेरी-तूर्य..

हिन्दी सबके मन बसी, राजा-प्रजा-फ़कीर.
मिटा न, अपनी खींचती, सबसे बड़ी लकीर..

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1 टिप्पणी:

  1. आचार्य श्रेष्ठ को

    सादर प्रणाम ||

    (आदरणीय प्रतुल-वशिष्ठ जी का आभार जो आपके दर्शन हुए )

    दीखते हैं मुझे सब दृश्य अति-मनोहारी,
    कुसुम-कलिकाओं से गंध तेरी आती है |

    कोकिला की कूक में भी स्वर की सुधा सुन्दर,
    प्यार की मधुर टेर सारिका सुनाती है |

    देखूं शशि छबि जब, निहारूं अंशु सूर्य के -
    मोहक छटा उसमे तेरी ही दिखाती है |

    कमनीय कंज कलिका विहस 'रविकर'
    पावन रूप-धूप का सुयश फैलाती है ||


    मेरा परिचय --
    वर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ, शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ|
    समय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ||

    चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ |
    गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ ||

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