हिंदी की पाठशाला : एक परिचय

* * * * * * * * * * * II अभियान जबलपुर की प्रस्तुति : हिंदी की पाठशाला II * * * * * * * * * * * एक परिचय : अभियान जबलपुर २० अगस्त १९९५ को सनातन सलिला नर्मदा तट स्थित संस्कारधानी जबलपुर में स्थापित की गयी स्वसंसाधनों से संचालित एक अशासकीय साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संस्था है. उच्च शिक्षा हेतु प्रोत्साहन, पर्यावरण सुधार, पौधारोपण, जल स्रोत संरक्षण, वर्षा जल संचयन, नागरिक / उपभोक्ता अधिकार संरक्षण, दिव्य नर्मदा अलंकरण के माध्यम से देश के विविध प्रान्तों में श्रेष्ठ साहित्य के सृजन, प्रकाशन तथा साहित्यकारों के सम्मान, दहेज़ निषेध, आदर्श मितव्ययी अन्तर्जातीय सामूहिक विवाह, अंध श्रृद्धा उन्मूलन, आपदा प्रबंधन, पुस्तक मेले के माध्यम से पुस्तक संस्कृति के प्रसार आदि क्षेत्रों में महत कार्य संपादन तथा पहचान स्थापित कर संस्था का नवीनतम अभियान अंतर्जाल पर चिट्ठाकारी के प्रशिक्षण व प्रसार के समान्तर हिन्दी के सरलीकरण, विकास, मानक रूप निर्धारण, विविध सृजन विधाओं में सृजन हेतु मार्गदर्शन, समकालिक आवश्यकतानुसार शब्दकोष निर्माण, श्रेष्ठ साहित्य सृजन-प्रकाशन, सृजनकारों के सम्मान आदि के लिए अंतर्जाल पर सतत प्रयास करना है. दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम, हिंदी की पाठशाला आदि अनेक चिट्ठे इस दिशा के विविध कदम हैं. विश्वैक नीडं तथा वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श को आत्मसात कर अभियान इन उद्देश्यों से सहमत हर व्यक्ति से सहयोग के आदान-प्रदान हेतु तत्पर है.

गुरुवार, 5 जून 2014

chhand salila: geetika chhand -sanjiv

छंदRose सलिला: 

गीतिका छंद 

संजीव 
*
छंद लक्षण: प्रति पद २६ मात्रा, यति १४-१२, पदांत लघु गुरु 

लक्षण छंद: 

    लोक-राशि गति-यति भू-नभ , साथ-साथ ही रहते 
    लघु-गुरु गहकर हाथ- अंत , गीतिका छंद कहते 

उदाहरण:

​​१. चौपालों में सूनापन , खेत-मेड में झगड़े 
    उनकी जय-जय होती जो , धन-बल में हैं तगड़े 
    खोट न अपनी देखें , बतला थका आइना 
    कोई फर्क नहीं पड़ता , अगड़े हों या पिछड़े

२. आइए, फरमाइए भी , ह्रदय में जो बात है       
   
​ ​
क्या पता कल जीत किसकी , और किसकी मात है   
   
​ ​
झेलिये धीरज धरे रह , मौन जो हालात है   
   
​ ​
एक सा रहता समय कब
​?​
 , रात लाती प्रात है

​३. ​सियासत ने कर दिया है , विरासत से दूर क्यों?
    हिमाकत ने कर दिया है , अजाने मजबूर यों
    विपक्षी परदेशियों से , अधिक लगते दूर हैं 
    दलों की दलदल न दल दे, आँख रहते सूर हैं 
facebook: sahiyta salila / sanjiv verma 'salil' 

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