मुक्तक काव्य परंपरा संस्कृत से अन्दर भाषाओं ने ग्रहण की है। मुक्तक का वैशिष्ट्य अपने आप में पूर्ण होना है। उसका कथ्य पहले या बाद के छंद से मुक्त रहता है। दोहा, रोला, सोरठा आदि द्विपदिक मुक्तक छंद हैं।
सवैया चतुष्पदिक मुक्तक छंद है। कुंडली षट्पदिक मुक्तक छंद है।
चतुष्पदिक मुक्तक में १. पहली, दूसरी, चौथी २. पहली-दूसरी, तीसरी-चौथी तथा ३. पहली-चौथी, दूसरी-तीसरी पंक्ति के
पदांत साम्य तीन तरह के शिल्प में रचना की जाती है। मुक्तक को तुक्तक, चौपदा, चौका आदि भी कहा गया है।
हिंदी मुक्तक में मात्रा-क्रम पर कम, मात्रा योग पर अधिक ध्यान दिया जाता है। तुकांत नहीं, पदांत साम्य आवश्यक है।
विराट जी के उक्त मुक्तक में पहली दो पंक्तियां १८ मात्रिक, बाद की दो १९ मात्रिक हैं। यह अपवाद है। सामान्यत: सब पंक्तियों में मात्रा-साम्य होता है।
हिंदी मुक्तक में लघु को दीर्घ, दीर्घ को लघु पढ़ने की छूट नहीं है, यह काव्य दोष है।
कुमार विश्वास के उक्त मुक्तक में यह दोष है।
हिंदी की पाठशाला / hindi ki pathshala
हिंदी भाषा के व्याकरण और पिंगल को सीखने, समझने और समझाने का मंच. हिंदी के विश्व वाणी बनने की दिशा में एक कदम.
हिंदी की पाठशाला : एक परिचय
मंगलवार, 20 फ़रवरी 2018
muktak rachna
chitralankar parvat
चित्रालंकार 🗻 पर्वत
।
।
आ
सनम
गले लग।
नयन मिला
हो न विलग।
दो न रहें, एक हों
प्रिय! इरादे नेक हों
चित्रालंकार पर्वत
मैं
खुद को
खुद-ब-खुद
छलता रहा हूं।
मंजिलों का स्वप्न
बनकर, हौसला ले
प्रयास सा पलता रहा हूं।
chitralankar parvat
चित्रालंकार:पर्वत
आ
गाएंगे
अनवरत
प्रणय गीत
सुर साधकर।
जी पाएंगे दूर हो
प्रिये! तुझे यादकर।
रविवार, 18 फ़रवरी 2018
शिव दोहावली
रूप नाम लीला सुनें, पढ़ें गुनें कह नित्य।
मन को शिव में लगाकर, करिए मनन अनित्य।।
*
महादेव शिव शंभु के, नामों का कर जाप।
आप कीर्तन कीजिए, सहज मिटेंगे पाप।।
*
सुनें ईश महिमा सु-जन, हर दिन पाएं पुण्य।
श्रवण सुपावन करे मन, काम न आते पण्य।।
*
पालन संयम-नियम का, तप ईश्वर का ध्यान।
करते हैं एकांत में, निरभिमान मतिमान।।
*
निष्फल निष्कल लिंग हर, जगत पूज्य संप्राण।
निराकार साकार हो, करें कष्ट से त्राण।।
*
शनिवार, 17 फ़रवरी 2018
नवगीत
नवगीत:
अंदाज अपना-अपना
आओ! तोड़ दें नपना
*
चोर लूट खाएंगे
देश की तिजोरी पर
पहला ऐसा देंगे
अच्छे दिन आएंगे
.
भूखे मर जाएंगे
अन्नदाता किसान
आवारा फिरें युवा
रोजी ना पाएंगे
तोड़ रहे हर सपना
अंदाज अपना-अपना
*
निज यश खुद गाएंगे
हमीं विश्व के नेता
वायदों को जुमला कह
ठेंगा दिखलाएंगे
.
खूब जुल्म ढाएंगे
सांस, आस, कविता पर
आय घटा, टैक्स बढ़ा
बांसुरी बजाएंगे
कवि! चुप माला जपना
अंदाज अपना-अपना
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१८.२.२०१८
बुधवार, 14 फ़रवरी 2018
युवा उत्कर्ष उत्सव, ट्रू मीडिया पत्रिका विमोचन ११.२.२०१८
देवनारायण नमन
वसुधा-लता, शशि कह रहीं।
सदय विश्वंभर
किरण-पुष्पा सुस्नेहिल बह रही।
शिवाला पाकर जसाला
हुआ मस्ताना विभोर।
ओम से रवि निनादित
ट्रू मीडिया साहित्य-भोर।
मनीषा रजनी विनय मिल
शारदा-ऊर्जा अंजोर।
प्राप्त कृष्णानंद करने
राम आए हो किशोर।
'उम्र जैसी नदी'
चढ़कर 'पिरामिड' रीता हुई
कौल त्रिभुवन से मिलन हित
सुशीलित छवि बो गई।
गीतिका रच, मुक्तिका कह,
तेवरी लिख संत बन।
गीत या नवगीत गा तू
समय-सच की रहे धुन।
कमल से कमलेश बनकर
विशाखा नव आसमय।
दमक दमयंती सदृश
हर छंद रस-लय-भावमय।
नेह नर्मदा सलिल सम
संजीव हो संजीव कर।
शिव सदृश विष कंठ में धर
गीत रच, जग-त्रास हर।
प्रजापति हैं हम सभी जो
शब्द-माटी में सनें।
भाव-सलिला में नहाते
'स्व' मिटा 'सब' ही बनें।
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११.२.२०१८, २०.३०
रेल आॅफीसर्स क्लब,
पंचकुइया मार्ग, दिल्ली
शिव दोहा
शिव विद्येश्वर नित्य हैं, रुद्र उमेश्वर सत्य।
शिव अंतिम परिणाम हैं, शिव आरंभिक कृत्य।।
*
कैलाशी कैलाशपति, हैं पिनाकपति भूत।
भूतेश्वर शमशानपति, शिव हैं काल अभूत।।
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शिव सतीश वागीश हैं, शिव सुंदर रागीश।
शून्य-अशून्य सुशील हैं, आदि नाद नादीश।।
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शिव शंभू शंकर सुलभ, दुर्लभ रतिपतिनाथ।
नाथ अपर्णा के अगम, शिव नाथों के नाथ।।
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शिव अनाथ के नाथ हैं, सचमुच भोलेनाथ।
बड़भागी है शीश वह, जिस पर शिव का हाथ।।
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हाथ न शिव आते कभी, दशकंधर से जान।
हाथ लगाया खो दिया, सकल मान-सम्मान।।
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नर्मदेश अखिलेश शिव, पर्वतेश गगनेश।
निर्मलेश परमेश प्रभु, नंदीश्वर नागेश।।
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अनिल अनिल भू नभ सलिल, पंचतत्वपति ईश।
शिव गति-यति-लय छंद हैं, शंभु गिरीश हरीश।।
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मंजुल मंजूनाथ शिव, गुरुओं को गुरुग्राम।
खास न शिव को पा सके, शिव को अतिप्रिय आम।।
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आम्र मंजरी-धतूरा, अमिय-गरल समभाव।
शिव-प्रिय शशि है, सर्प भी, शिव में भावाभाव।।
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भस्मनाथ शिव पुरातन, अति नवीन अति दिव्य।
सरल-सुगम सबको सुलभ, शिव दुर्लभ अति भव्य।।
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१५-२-२०१८, ८.४५
एच ए १ महाकौशल एक्सप्रेस
बुधवार, 25 अक्तूबर 2017
हास्य रचना
मिली रूपसी मर मिटा, मैं न करी फिर देर।
आंख मिला झट से कहा, ''है किस्मत का फेर।।
एक दूसरे के लिए, हैं हम मेरी जान।
अधिक जान से 'आप' को, मैं चाहूं लें मान।।"
"माना लेकिन 'भाजपा', मुझको भाती खूब।
'आप' छोड़ विश्वास को, हो न सके महबूब।।"
जीभ चिढ़ा ठेंगा दिखा, दूर हुई हो लाल।
कमलमुखी मैं पीटता, हाय! 'आप' कह भाल।।
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